Tuesday, May 21, 2024
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‘कैश लैस’ के साथ साथ ‘कैश से लैस’ होना भी जरूरी

आज इंटरनेट की दुनिया ने जीवन में अमूलचूल परिवर्तन कर दिया है। जिधर देखो उधर कोई मोबाइल में जुटा है तो कोई कम्प्यूटर या लैपटाॅप में मसगूल है। साथ ही हमारे दुनिया की अर्थ व्यवस्था में अगर तुलनात्मक बात करें तो हमारे देश ने भी इस क्षेत्र ने काफी अच्छा स्तर पा लिया है, इसी के चलते हमारे देश की प्रगति का लोहा, पीतल, कांस्य, चांदी और सोना सब माना जा रहा है। लोकलुभावन घोघणाओं के बीच आधारभूत समस्याओं को समझने का प्रयास राजनीतिक डिजिटलीकरण से ईमानदारी करने की डींगे हांकी जा रही हैं। शायद हम सब अब साक्षर हो चुके हैं ! इस पुष्टि के बावजूद लोग खोज में लगे हैं कि वास्तव में कितने मानुष निरक्षर हैं और डिजिटल जिंदगी के तकनीकी पहलुओं से अनजान हैं। साथ ही गर्व की बात यह भी है कि हमारा देश, इंटरनेट प्रयोग के हिसाब से दुनिया में दूसरे नंबर पर है भले ही इंटरनेट की गुणवत्ता व स्पीड के मामले में थोड़ा टांय टांय फिस्स दिखता हो। हालांकि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि इंटरनेट तो चालू कह सकते ही हैं। भले ही तमाम शिकायतें आती हैं कि अमुक जगह पर सर्वर या सिगनल नहीं मिल रहा है। इसके साथ ही आंकड़ों व रिर्पोटों की मानें तो जिंदगी की मूल सुविधाओं की ओर काफी ध्यान दिया जा रहा है उदाहरण के लिए डिजिटली पुष्टि भी हो चुकी है कि खुले में शौच से सबको मुक्ति मिल गई, पर वस्तुतः कितने परिवार अभी इससे दूर हैं यह तो जमीनी हकीकत देखने पर ही पता चलेगा कि वास्तविकता क्या है?
यह भी कहा गया कि देशवासियों की जिंदगी डिजिटल हो रही है और वो अब कैशलेस जी रहे हैं, यह हमारी असली उपलब्धि है !
डिजिटली युग की बात करें तो सुनने में आया है कि डिजिटल लेनदेन में अपराध भी बढ़ रहे हैं क्योंकि समाचार पत्रों व चैनलों में तमाम ऐसी सुर्खियां आती रहती जिससे पता चलता है कि साइबर अपराधियों ने लोगों की वर्षों में मेहनत से कमाई धनराशि को कुछ ही पलों में ‘पार’ कर दिया। ऐसे में अपराधियों पर सिकंजा कसने में पुलिस भी अपने हांथ उठा रही है उसका कहना है कि समुचित संशाधन उपलब्ध नहीं है अबतक।
हालांकि डिजिटल होने में तमाम लोग अपने आपको असहज महसूस करते है जैसे कि तमाम सड़कछाप दुकानदार कहते हैं स्वाइप मशीन नहीं लगवाई क्योंकि उसका सही सिस्टम ही नहीं पता ऐसे में हम क्या करें। यही नही रूकते वो, वो बोलते हमें तो मोबाइल का सिस्टम भी ज्यादा नहीं आता, ऐसे में डिजिटलीकरण का सार्थक मतलब कैसे निकाल लिया जाये। वहीं सवाल उठता है कि ठेला लगाने वाले दुकानदार व फुटकर व्यापारी अपना सामान बेचेंगे या मोबाइल से ही उलझते रहेंगे। तमाम जगहों पर स्वाइप मशीनें ठीक काम नास करने की नौबत भी सामने आ रही है तो कहीं बिजली भी अपना रोल निभा रही है। साथ ही तकनीकी खराबी भी सामने आ रही हैं। ऐसे में बंद या खराब मशीन वाले दुकानदार मायूस ही बैठे रहेंगे और बिना डिजिटल वाले दुकानदार मनमाना कमाएंगे। ऐसे में कहा जा सकता है कि ‘कैश लैस’ के साथ साथ ‘कैश से लैस’ होना भी जरूरी है।